TISS-Takshila Lecture on Contemporary Challenges to Democracy

...उस सब को साथ में लिया जाये तो शायद ऐसी भावना किसी के मन में बन सकती है कि आपके सामने जो ये खड़ा है तिहत्तर-चौहत्तर वर्ष का आदमी वो बहुत ऊँचे स्थर का गाँधीवादी है। मैं ये कहना चाहता हूँ कि मैं गाँधीजी के परिवार का उपज हूँ पर मैं गाँधीवादी नहीं हूँ। आपलोग ये मत समझिये कि ये बहुत आदर्श गाँधीवादी है। मैं बिल्कुल नहीं। मैं आज के उपभोगता युग का एक समकता प्रतीक हूँ। और कुछ नहीं।

मामूली व्यक्ति हूँ। नागरिक हूँ। चिंतित नागरिक हूँ। उत्साहित भी। उत्साह और चिंता, खुशी और गम, किसी मुल्क में इस तरह नहीं मिले जितने की हिन्दुस्तान में देखे हैं। पर शुरु में ये मैं ज़रूर कह देना चाहूँगा कि अगर हम सोच रहे हैं आज, बात कर रहे हैं आज, इंडियन डेमॉक्रेसी के बारे में और कह रहे हैं कि कॉनटेम्पररी चैलेन्जस क्या हैं, आज की हमारी समसामयिक चुनौतियाँ क्या हैं, तो ये शुरु में हमें खुशी से कुबूल करना चाहिएthat Indian democracy has been an outstanding success by any standard in the world.

सोलहवीं लोक सभा चल रही है। पन्द्रह लोक सभा के चुनाव हुए हैं। सिर्फ एक बार स्थगित हुआ, फिर हुआ। और कैसे गज़ब के चुनाव। बड़े-बड़े दिग्गज चुने गए, बड़े-बड़े दिग्गज हारे। और जो हार रहे हैं वो फिर वापस लाए गए हैं। और जो वापस लाए गए हैं, उनको फिर घर भेज दिया गया है। ये हमारी डेमॉक्रेसी की बहुत बड़ी उपलब्धि है। राजनितिक दल, राजनितिक नेता, जो जीते जो हारे, जीत हमेशा मतदाता की होती है। डेमॉक्रेसी की होती है।

हमारे इलेक्टर्स, उसकी साइज़ बढ़ती जा रही है। पॉपुलेशन बढ़ रही है, तो इलेक्टोरेट की पॉपुलेशन भी बढ़ रही है। इसको अगर हम हमारी दुनिया की एक एरिया में देखें, ये कितने महत्त्व की बात है। आस-पड़ोस में फ़ौजें आईं। सरकार में फ़ौज, फ़ौजरूपी सरकार ऐसा हिन्दुस्तान में नहीं हुआ। और फिर देखिए, पंडित जवाहरलाल नेहरू जैसे, तीन बार जीते, तीन लोक सभा के चुनाव '52, '57, '62'62 में ज़रा कम मात्रा से। '67 में इंदिरा जी की बारी आई, वो और भी कम मात्रा से जीतीं। जीतीं लेकिन और भी कम मात्रा से।

'71 के बात अलग है। जंग हो रहा है बांग्लादेश का निर्माण हो रहा है। '71 में भारी जीत हुई, कांग्रेस की। फिर इमरजेंसी आई, डेमॉक्रेसी को ठेंस पहुँची। जिसकी किसी ने कल्पना नहीं करी थी। न जाने क्यूँ कैसे। गनीमत में कैसा हुआ, चुनाव हुए। क्यूँ इंदिरा जी ने '77 में चुनाव बुलाए, अंदाज़ा लगाना मुश्किल है। इश्वर की अनुकंपा से वे जीतीं। उसी इंदिरा गाँधी को हार का सामना करना पड़ा। ये सब इतिहास है।

आज अगर भारत का मतदाता, she or he, किसी चीज़ में world class expert है तो it is in the exercise of the democratic franchise. She or he may be poor. She or he may be illiterate, but once in the polling booth, she or he is an emperor or empress of democracy. And votes with confidence and with skill. And votes to either defeat, or to reaffirm. इसपर हमें गर्व करना चाहिए। इलेक्शन कमीशन हमारा जो है उसपर हमें गर्व करना चाहिए। जिस स्वतंत्रता से, निष्पक्षता से और निपुणता से इलेक्शन कमीशन ने हमारे इलेक्शन्स चलाए हैं, वो सराहनीय ही नहीं, अनुकरणीय ही नहीं, अद्भुत व्यक्ति है, अद्भुत वस्तु है, अद्भुत विषय है, अद्भुत हकीकत है।

तो क्या our democracy has no challenges? So have we reached and we can just derive satisfaction from the fact that we are a great democracy? Unfortunately, no. औरों से विशेषकर एशिया में, औरों से अधिक डेमॉक्रेटिक होना, अधिक डेमॉक्रेटिक सफलताएँ हासिल करना पर्याप्त नहीं। There is such a thing as the quality of democracy, also. Democracy is not just about repeated numbers of elections, and repeated successfully conducted elections. There is something called the quality of elections. For the end-maker, मैं एक इससे जुड़े विषय पर आता हूँ। हम कुछ अलफ़ाज़ हमारे कांस्टीट्युशन में, राजनीतिक चर्चा में, इस्तेमाल करते हैं, उनकी गहराई पर तफसिये से जाए बगैर। और उनमें एक ये है – We are a democratic republic. हम दोनों साथ-साथ कह देते हैं। Democratic republic. We are a republic of India. We are a democratic country. We are a republic of India. तो democracy और republic क्या ये interchangeable शब्द हैं? क्या उनका अर्थ एक ही है? अगर हम democracy हैं तो republic कहने की क्या ज़रूरत है? अगर हम republic हैं तो democratic ये दोहराने की क्या ज़रूरत है? इन दोनों कहने की क्या ज़रूरत है? एक गुड़ तो एक शक्कर, दोनों के कहने की क्या ज़रूरत है? है ज़रूरत।

बाबा साहेब ने, पंडित नेहरू ने, के.एम. मुंशी ने, अल्लडी कृष्ण स्वामी ने और बाकी जो दिग्गज थे जिन्होंने कांस्टीट्युशन को ड्राफ्ट किया, बाबा साहेब के नतृत्व में, बहुत सोच समझ कर कहा। कह सकते थे कि India is a democracy. Is a democratic country. Why republic also? Republic इस वजह से। इस सभा को देखिए। इस अवसर, इस घड़ी को देखिए। तकरीबन सब-के-सब यहाँ वोटर्स हैं। और जो बच्चे नहीं वोटर्स हों, वो होंगे। अगले चुनाव में नहीं, तो अगले से अगले चुनाव में वोटर्स होंगे। हम सब वोटर्स हैं। शायद हम सब वोट कर भी चुके हैं। कई लोग दो-तीन-चार बार वोट कर चुके हैं। Certainly we have all voted once. But that is not our definition. That we are democrats, yes. But we are also republic. उसका मतलब क्या है? उसका मतलब ये है कि यहाँ जो हर इंसान बैठा है, हर कुर्सी पर जो बैठा है, वो एक नम्बर नहीं है। आज आधार का नम्बर भी है तकरीबन सबों के पास। हर एक के पास नम्बर कोई-न-कोई होता ही है। फ़ोन नम्बर, पासपोर्ट नम्बर, गैस कनेक्शन नम्बर, अथाह नम्बर। नम्बर तो नम्बर ही हैं लेकिन उन नम्बरों से आगे भी एक चीज़ है जो नम्बर में नहीं गिनी जाती। जिसका वजन न्यूमेरिकल नहीं है। वो है हर व्यक्ति की अस्मिता, हर व्यक्ति का व्यक्तित्व। हर इंसान की सिफ़त, उसकी फिज़ा। और वो जो है उसको रिपब्लिक में एक ऐसा स्थान दिया है जो कि प्रेसिडेंट ऑफ़ इंडिया से कम नहीं।

बाबा साहेब ने बहुत सोचकर कहा है, तब समझिए। गाँधीजी जो कि खादी में विश्वास करते थे। हथकरघे में विश्वास रखते थे। गाँवों को बहुत अहमियत देते थे। ग्रामीण भारत के पुनरुत्थान के लिए काम करते थे। उनके समय में, उनके प्रभाव की छाया में, बाबा साहेब ने कहा – Not the village, not the district, but the individual is the unit of our constitution. The individual is the unit. नागरिकता जो है वो नागरिक की होती है। वो उस नागरिक की एक अनोखी उपलब्धि। उसका एक आज यूनिक आइडेंटिटीफ़िकेशन नम्बर, यूनिक आइडेंटिटी नम्बर है। तभी बाबा साहेब सोच चुके थे that individual is unique. And it is in the uniqueness of that individual. बहुजन हितायः, बहुजन सुखायः, बहुत बढ़ियाँ श्लोक है। हर एक का, बहुत लोगों का। अधिकांश लोगों का हित। उनकी खुशहाली। ये है डेमॉक्रेसी। लेकिन रिपब्लिक जो है, सर्वलोका श्रेयायः। हर एक को आश्रय देने वाला देश रिपब्लिक होता है। इसमें हर इंसान अमूल्य होता है। आदर्श, ये उद्देश्य। हकीकत में ये है? ऐसा नहीं है कि नहीं है कि हम इस तरह बिनसुखिया...। अगर आप-हम यहाँ देखें। हमें इसी सभा को, मैं फिर से आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ। हम जो यहाँ मिले हैं, everyone is an individual by himself or herself. हो सकता है कि यहाँ से अधिकांश लोगों की मातृभाषा हिन्दी, हिन्दुस्तानी, उर्दू हो। शायद this is because हम पटने में हैं so naturally यहाँ मलयालम या तेलेगु थोड़े ही बोली जाएगी। होंगे कुछ लोग बोलने वाले पर अधिकांश...फिर भी। फिर भी अलग-अलग जगहों से हम आए हैं। हमलोगों कि पहचान अपनी है। हम नम्बर नहीं हैं। हम इंसान हैं। ये रिपब्लिक की पहचान है।

आज कॉनटेम्पररी चैलेन्ज, ये जो रिपब्लिकन नेचर है हमारे देश का, ये तकलीफ़ में है। मैं इसको क्राइसिस नहीं कहूँगा। क्योंकि हिन्दुस्तान कई क्राइसिस से निप्ट चुका है। कोई हमारे देश के इतिहास में, हमारे मुल्क की तवाहीक में कोई ऐसा समय नहीं रहा है जबकि कोई बड़ी भारी गंभीर पीड़ा हमें धराशाई बनाने के लिए नहीं हो। सबसे हम उभरते आ जाते हैं। आज के संकट से भी हम ज़रूर उभर के आएँगे। पर संकट जैसी स्थिती है।

मेनका गुरुस्वामी कर के एक महिला हैं। मैं उनसे परिचित नहीं हूँ। हाल ही में मैंने उनकी YouTube में एक छोटी-सी इन्टरव्यू देखी, सुनी। उन्होंने एक बहुत ही गज़ब की बात की। भाइयों-बहनों, अभी आप ज़रा गौर करके सुनिए। डेमॉक्रेसी में मेजोरिटी-माइनॉरिटी की हम बात करते रहते हैं। मेजोरिटी-माइनॉरिटी। पकिस्तानी मेजोरिटी मुस्लिम हैं। कुछ चंद लोग हिन्दू हैं, क्रिसचियन हैं। कहीं कोई अगर हिन्दू महिला पकिस्तान में जज बन जाती है तो बहुत बड़ी बात होती है। दुनिया भर में उसकी चर्चा होती है। पर मेजोरिटी-माइनॉरिटी। वहाँ पर माइनॉरिटी हिन्दू है। भारत में मेजोरिटी हिन्दू है, माइनॉरिटी मुस्लिम। ठीक है। लकिन मेनका गुरुस्वामीजी ने एक बहुत ऐसी बात कही जिसको सुन कर मुझे लगा – अरे, ये तो बिल्कुल ठीक कह रही हैं। ये तो, अरे ये जो कह रही हैं, वो तो बिल्कुल सही बात है। ये बिल्कुल हकीक़त है। पर ये मैंने कभी इस तरह जिस तरह उन्होंने कहा, मैंने उस तरह कभी सोचा नहीं। मैंने देखा नहीं इस हकीक़त को जिस तरह वो कह रही हैं।

कभी-कभी कई बार ऐसा हो जाता है। बच्चे जो होते हैं। बच्चे कुछ कई बार ऐसी चीज़ें कहते हैं। ऐसे सवाल पूछते हैं जिससे कि लगता है कि ये बच्चा नहीं है, ये तो गुरुओं का गुरु है। एक सवाल एक बच्ची ने मुझसे पुछा था जिसका कि मैं जवाब अब तक नहीं दे पाया। पर उस सवाल में जवाब ही था। एक बच्ची ने मुझसे पुछा – Is the world a good place, or a bad place? अब मैं क्या जवाब दूँ उस बच्ची को? मैं अगर उसको कहूँ कि नहीं नहीं its a very good place तो उसको ज़रूर कुछ याद होगा it was not such a good place. और मैं कहूँ कि नहीं बच्ची, ये तो बड़ी भयंकर जगह है तो वो बच्ची को...के साथ अन्याय होगा। और अगर मैं उसको कहूँ कि नहीं बच्ची, थोड़ा अच्छा, थोड़ा बुरा है। Little good, little bad. Today good, tomorrow bad तो वो तो कंफ्यूज हो जाएगा। तो मैंने उसको मन-ही-मन नमस्कार किया बच्ची को और कहा – Actually baby, I don’t know. तो उसनेYou don’t know. मैंने कहाI don’t know but I will think about it. You also think about it. But I think ice-creams are very good!

मेनका गुरुस्वामी ने इसी तरह की एक बात कही। मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि हिन्दुस्तान में अब मेजोरिटी-माइनॉरिटी की बात नहीं कर सकते। क्यों? हम तो हैं मेजोरिटी, देखिए Hindi is a majority language. Hindu is a majority religion. Men are in majority. 50-50 होना चाहिए ना मेन और विमेन का, नहीं पर हिन्दुस्तान में तो men are in majority. ये हिन्दुस्तान की खूबी देखिए। साइंस और नेचर दोनों के विरोध में हिन्दुस्तान में men are in majority. इस हॉल को देखिए, कहना मुश्किल है कि मेन मेजोरिटी में हैं या नहीं हैं। This hall is a true representative of the republican spirit of India.

Coming back to Menaka Guruswamy, मेनका ने कहा है – India is not a nation of majority and minority. Every Indian is a majority in one place, and minority in another place. There is no Indian who is a majority everywhere in India. He may be majority here today. If he goes hundred miles, he’ll be in a minority. If she is in a minority there, go a hundred miles, she’ll be in a majority there. Majority and minority are constantly shifting places in India. जैसे बस में, बस के अन्दर कोई खड़े रहते हैं। विशेषकर, देखिए ये हमारे समाज की बात है। महिलाएँ खड़ी-खड़ी जाती हैं। युवक, जवान लड़के भी उठते नहीं हैं। जगह नहीं देते हैं। महिलाएँ भटकती रहती हैं। लेकिन उस बस में हम थोड़ी देर बाद देखें। Everybody is going to the same place, but everybody is different. Destination is the same, person is different. मेनका गुरुस्वामी ने कहा है – India is a majority of many minorities. There is only one majority in India, and that is the majority of minorities. भारत अल्पसंख्यकों का बहुसंख्या है। अल्पसंख्यक जो परिभाषा है वो हर हिन्दुस्तान के सिर पर एक टोपी या रुमाल या पगड़ी जैसे फिट होती है। We are all a minority, and therefore we are all together a majority of minorities. कोई हमें मेजोरिटी नहीं कहे। कोई हमें माइनॉरिटी न कहे। क्योंकि हम माइनॉरिटी की मेजोरिटी हैं।

इस मेजोरिटी ऑफ़ माइनॉरिटीज़ को रिपब्लिक कहते हैं। सरकार बनती है उस पार्टी की—हालाँकि देखिए कांस्टीट्युशन में पार्टी का नाम नहीं है। कांस्टीट्युशन ऑफ़ इंडिया पार्टी का ज़िक्र नहीं करता है। जिस व्यक्ति को संसद का समर्थन प्राप्त है, वो लीडर बनेगा। पार्टी के बात एक अन्य, एक छोटे-से संशोधन में आई है, क्रॉस फ्लोरिंग, क्रॉस फ्लोर वोटिंग के बारे में। In the context of leaving one party and joining another, disqualification उसमें पार्टी का उल्लेख बाद में आया है, संशोधन के रूप में। वैसे (नहीं)।

तो इस majority of minorities को, इस अपनी, अपनी इस सिफ़त को बचाए रखना है। कोई माइनॉरिटी न समझे कि वो, कि वो किसी दुविधा में, वो अकेली है। नहीं, हम सब as an individual, we are all…individuals we are all in a minority, but we have the strength of being in the majority of minorities. इस majority of minorities पर एक संकट आ रहा है, आया है, उसके सामने एक खतरा है। और वो ऐसा है – आज़ादी की लड़ाई के वक्त हम सब एक जुट हो कर लड़े थे। और जो हिन्दुस्तान में मुसलमान रहा है, जो भारत को छोड़ कर पकिस्तान नहीं गया। उसको हम, उसकी, उसकी हिम्मत, उसकी सिफ़त, उसकी सोच के बारे में जितनी प्रशंसा करें, कम है।

हम बिहार में हैं। तो बिहार की एक बात करता हूँ। मैं और क्या मैं पाँच मिनट ले सकता हूँ? सात-आठ मिनट ले सकता हूँ? आपमें से जो बिल्कुल ऊब गए हैं, जाने को तैयार हैं वो निस्संकोच – दो द्वार हैं, तीन द्वार हैं। मैं ज़्यादा समय नहीं लूँगा। ...अरे, पच्चीस मिनट तो बहुत ज़्यादा होते हैं। पच्चीस मिनट तो बहुत ही ज़्यादा होते हैं। नहीं, मैं तो दस मिनट, सवा चार तक समाप्त कर दूँगा, खुशी पूर्वक। हम बिहार में हैं। तो सन् ’46 की बात है। बिहार में कौमी दंगे हुए थे। नोआखाली में एकदम unimaginable crimes were committed by the majority there on the minority there. Who was the majority? Who was the minority? I’ve done here. बिहार में unimaginable crimes were committed by the majority here on the minority here. Who was the majority? Who was the minority? I’ve done here.

गाँधीजी आए एक गाँव में। उनको सुनाया गया कि 102 साल की एक वृद्ध महिला। वृद्ध महिला संस्कृत शब्द है, उसका उर्दू मैं ठीक से जानता नहीं। उस पीढ़ी में 102 बरस की वृद्ध महिला की हत्या हुई थी। तो गाँधीजी गए, शाम को मीटिंग हुई पेड़ के नीचे। “मुझे बताओ कि इस औरत को किसने मारा? तुम ही लोगों में से किसी ने मारा है।” चुप। सिर नीचे। “तुम में से कई लोग कांग्रेसी हो?” चुप। “मुझे तो कहो, मैं भी कांग्रेस में रह चुका हूँ। कम-से-कम मुझको तो कांग्रेसी लोग तो मुझे बताओ, तुम्हें मालूम है किसने इस औरत का कतल किया?” चुप। “मैं जाकर उन हड्डियों से पूछूँगा – बोल हड्डी, तुझे किसने मारा?”

Noakhali में the same thing in reverse, in reverse. यहाँ, इस पूरे खानदान, नोआखाली में, पूरे खानदान को कतल किया। किसने, बांग्ला में बोले। थोड़ी बांग्ला सीख ली थी। मंदिर में काली माँ की पूजा में एक तलवार थी, वो गायब। तो तलवार किसके पास है? बोलो।” चुप। “वो तलवार वापस जानी चाहिए मंदिर में। कौन रखेगा?” चुप।

यहाँ की मेजोरिटी, वहाँ की माइनॉरिटी। वहाँ की माइनॉरिटी...यही हमारे हिन्दुस्तान की है। पर उस आदमी ने ये भूल कर कि वो क्या मेजोरिटी-माइनॉरिटी है...। मैं आज हिन्दुस्तान में ये सब देख रहा हूँ। मुझे शर्म आ रही है। और कहते हैं, कहा गया है कि दिल्ली में जब वो गए। नोआखाली, बिहार सब बदल कर। कलकत्ता में बहुत बड़ी रायट को रोक कर। अनशन कर के, रोक कर फिर जब दिल्ली गए। तो, मेरे स्वर्गीय भाई रामचंद्रन गाँधी, फिलोसोफर, उन्होंने कहा है, जो कि बिल्कुल गज़ब की बात कही। कि गाँधीजी को तीन गोलियों ने नहीं मारा। गाँधीजी ने तीन गोलियों को अपनी छाती से रोका। और उन तीन गोलियों को अपने मार्ग से रोका, आगे बढ़ने से रोका। तो उस क्षण हिन्दुस्तान के रिपब्लिक की आत्मा—रिपब्लिक बना नहीं था, ‘50 में बनने वाला था। ये ‘48 की बात है। डेमॉक्रेसी तो हो गई थी। रिपब्लिक नहीं बना था—रिपब्लिक ऑफ़ इंडिया की आत्मा तब जाग उठी थी। एक काया का अंत हुआ था, पर एक भावना उस समय अपनी चरमसीमा पर पहुँची और मुझे देखकर ज़रा भी अचरज नहीं हुआ।

हाल में कुछ लोगों ने उसी सोच के, जिस सोच से उनपर गोलियों का प्रहार हुआ, उसी सोच के कुछ लोगों ने उनकी तस्वीर पर एयर गन की बुलेट्स चलाईं। तो मुझे समझ में नहीं आया कि अब मैं गुस्सा होऊँ या हँसु, क्या करूँ? और फिर मैं उस बच्ची के सवाल के बारे में सोचने लगा। Is the world a good place, or a bad place? मुझे जवाब रिहाया – It is neither a good place, nor a bad place. It is a place which has no meaning to it, but it has one meaning. And that is this: that there may be good and bad, but the good is always stronger than the bad.

और जिन्होंने रामलीला में गत्तों की मूर्ति पर खेल में, उत्साह में, नाटक के उमंग में, उस महान चरित्र, काव्य की श्रद्धा में। हम देखते हैं राम जहि होते हैं, रावण मरे जाते हैं। पर यहाँ एक छवि पर, तो मैंने सोचा है कि जो उस एक छवि पर एयर बुलेट फेंक रहा है। वो घृणा से नहीं, वो hatred में नहीं। गाँधी का सत्य जो है, वो इतना प्रभावशाली है कि उनके जाने के सत्तर वर्ष के बाद भी। उनकी काया का अन्त होने के बाद भी। उनको डर है कि इस महात्मा की आत्मा हमारे देश की आत्मा से ऐसी जुड़ी है कि हमें कभी विभाजित होने की देगी नहीं। इसलिए एकदम निरर्थक एयर बुलेट्स भेजी जा रही हैं। एक-के-बाद-एक छवि पर और वो छवि हँसती हुई, हँसती हुई, उसको प्रार्थना में माँफी देती जा रही है, देती जा रही है। ये हमारे देश की खूबी है। ये हमारे रिपब्लिक की शक्ति है कि जो भी उसकी एकता पर, उसकी नेकता पर प्रहार करेगा वो एक प्रकार का नाटक लगेगा। सही मायने में कभी हमारे देश की आत्मा पर काबू नहीं पायेगा।

Challenge to our democracy can be summarized in five sentences. There is a challenge of violence to our democracy. But we may overcome it, because we as a people do not believe in violence. We have rejected violence. कल कोलकता में एक सिटिंग एम.एल.ए. की हत्या हुई। Violence and democracy do not go together, but they do in fact exist together. स्टेट पर, साशन पर, एक बहुत बड़ा दाइत्व है कि वायलेंस पर नियंत्रण। आगामी हफ़्तों में चुनाव के समय, वायलेंस न हो, ये बहुत ज़रूरी है। Violence is a very serious threat to our democracy. People of India are bigger than any violence, but the people of India should not be having to be subjected to violence.

Second, money पैसा is a huge challenge to democracy. किस तरह से, इस तरह से। पहली लोक सभा में आप देखेंगे, सबसे—कांग्रेस के बाद—सबसे बड़ा नम्बर, सबसे ज़्यादा संख्या किसकी थी? लोक सभा, first-second लोक सभा? निर्दलीय MPs की, Independent MPs की, आचार्य कृपलानी जैसों की, इंडिपेंडेंट। वो कुछ समय के लिए प्रजा सोशलिस्ट पार्टी में थे, फिर इंडिपेंडेंट हो गए थे। इंडिपेंडेंट।

आचार्य कृपलानी ने एक बार बहुत गज़ब की बात कही गाँधीजी के बारे में। आचार्य कृपलानी ने कहा गाँधीजी ने हमें क्या नहीं सिखाया – दुश्मन से कैसे दोस्ती बनाएँ, ये सिखाया। लेकिन गाँधीजी ने एक चीज़ नहीं सिखाई – अपनों से कैसे दोस्ती बनाएँ, ये उन्होंने नहीं सिखाया।

इंडिपेंडेंट जो लोग थे वो कांग्रेस में रह चुके थे। पर अनबनीय से कांग्रेस के अपने नहीं बने थे। वो इंडिपेंडेंट थे। आज money की वजह से निर्दलीय MP तो almost gone. पर जो गरीब कैंडिडेट हैं, उसकी तो समझिए chance ही नहीं। लेकिन बात इतनी सिर्फ़ नहीं है। मनी पॉवर से जो जीत कर आता है, चाहे किसी भी पार्टी का हो, वो शुरु के दिन से ही, डे-1 से कर्ज़दार बनता है, कर्ज़े में रहता है। जिसने उसको फण्ड किया है, वो उसका शुक्रगुज़ार है। और सिर्फ शुक्रगुज़ार ही नहीं, उसके लिए उसको कुछ करना भी तो है। Corruption की शुरुवात तभी से होती है।

Cash-for-questions तो एक हम देख चुके हैं। But MP की इंडिपेंडेंस जो है, उसकी स्वतंत्रता वो समझिए रुपयों से उसका एक प्रकार से अंत हो जाता है। इतना ही नहीं, एक और चीज़ हम देख रहें हैं। कि इलेक्शन में एक आदमी दूसरे के सामने खड़ा वो। One candidate against another तो हम जानते हैं। One party against another हम जानते हैं। लेकिन मैंने कहा कि इंडिपेंडेंट नहीं हैं। वो इंडिपेंडेंट पार्लियामेंट में पहुँचते नहीं हैं। असेंबली में पहुँचते नहीं हैं। पर चुनाव में ज़रूर होते हैं। चुनाव में इंडिपेंडेंट कैंडिडेट्स बहुत होते हैं। उनको इलेक्शन सिंबल मिल जाता हैं क्योंकि कुछ नीयम हैं, मिल जाता है। पर उनके पीछे पार्टी नहीं हैं। ये वो नाखुश लोग हैं जिनको टिकेट नहीं मिली। वो सिर्फ़, वो जीतने के लिए लड़ते नहीं हैं। वो हराने के लिए लड़ते हैं। किसी-न-किसी को हराने के लिए। किसी-न-किसी के वोट की संख्या को कम करने के लिए। और कुछ नहीं तो कम-से-कम इस संतोष के लिए कि हम, हमारा नाम उस लिस्ट में, उस फ़ेयर लिस्ट में आ गया है। इसके पीछे भी पैसा है। Money puts up dummy candidates and in a way compromises democracy.

Third, गुंडे मुस्टंडे दबंग muscle power भय। In other words, fear. Fear is the third great enemy of democracy. डर के मरे न वोट करना। या डर के मरे एक किस्म से वोट करना। जो NOTA लिखता है या लिखती है, जो NOTA को जो वोट देता है, वो बिल्कुल fearless है। मैं ये नहीं कह रहा हूँ के सब NOTA करिए। बिल्कुल नहीं। मैं NOTA है उसकी मुझे खुशी है। पर NOTA का मैं प्रचार नहीं कर रहा हूँ। पर मैं सिर्फ़ ये कह रहा हूँ कि जो NOTA को वोट करता है, वो kind of fearless person. पर fear is very real. मोहल्ले में निकलते समय, गलियों में जाते समय कौन किसको वोट कर रहा है, ये मालूम हो जाता है। और डर-डर के चलते हैं।

Violence. Money. Fear. And the fourth is जो कि मैं अब तक कहता आया हूँ, वो। Manipulation. हम लोग भावुक लोग हैं। बहुत भावुक लोग। हम election skill में Post-doc ले चुके हैं। Masters से ज़्यादा Post-doctorate हम ले चुके हैं। कैसे जिताएँ। किस भारी तरीके से जिताएँ। राजीव गाँधी को हमने किस तरह जिताया। पर उसी राजीव गाँधी को जब बोफ़ोर्स की बात निकली, उसको हारना पड़ा। तो हमलोग खूब परख कर वोट करते हैं। हम शिक्षित हों या ना हों, पारखी हैं हम। लेकिन भावुक भी हैं। आई लड़ाई, आया युद्ध, हम एक होकर वोट करेंगे। इंदिरा गाँधी की हत्या हुई तो जिस इंदिरा गाँधी को भारत ने हराया था, उसकी हत्या को वो सह नहीं सकी उसके बाद। राजीव गाँधी को किस बेतादाद में जिताया। फिर भावुकता। उस भावुकता को manipulate करने कि जो एक मुहिम है, जो शक्ति है, वो बहुत बड़ा challenge है। वो बहुत बड़ा danger है। भिड़ा दो, छिड़ा दो, एक से एक को लड़ा दो। एक की भावना से खेल खेलो। घृणा पैदा करो और जीतो। ये खतरनाक मुहिम है। Fourth challenge to democracy.

और fifth challenge जिससे मैं अंत करता हूँ – और वो है a big cynicism about our politics. देखिए पॉलिटिशियन खराब हो सकता है, पॉलिटिक्स को मत बदनाम करें। जयप्रकाश नारायण पॉलिटिक्स में थे, पॉलिटिकल पार्टी में न रहे हों। जयप्रकाश नारायण जैसा पॉलिटिकल थिओरिस्ट, पॉलिटिकल स्टेट्समैन कहीं नहीं है। इसमें पॉलिटिक्स को हम दोषित मत करें, समझें। पॉलिटिक्स में कोई दोष नहीं है, पॉलिटिशियन्स में दोष है। अँधेरे में एक प्रकाश, जयप्रकाश जयप्रकाश। उसको मैं कभी भूल नहीं सकता। इतनी उस व्यक्ति में मायूसी थी कि क्या हो गया हैं हमारे देश में – करप्शन, कायरता। और उस अवस्था में भी उस आदमी ने इसी ज़मीन से उठ कर चुनौती दी और सारी व्यवस्था को हिलाया। आज आप कह सकते हैं – आप कह रहे हैं, ठीक है हुज़ूर। आपकी भी उमर हो गई है। आप पुराने ज़माने में रहते हैं। आज जयप्रकाश की आप बात करते हैं, अच्छा है। पर जयप्रकाश कहाँ है?

तो मैं कह रहा हूँ। जयप्रकाश शायद नहीं है पर जयप्रकाश का प्रकाश। जयप्रकाश का प्रकाश हमारे दिल में है। जैसे कि गाँधी का आत्मा में है। जयप्रकाश ने कहा थे कि he wants a party in this democracy. पर उन्होंने इलेक्शन के ज़रिए एक क्रांति ले आने की चेष्टा करी। उनको एक हद तक सफलता मिली। समय उनके खिलाफ था। आयु उतनी, स्वास्थ्य उनके खिलाफ था। पर जयप्रकाश ने एक मिसाल दी। एक डेमॉक्रेसी में cynicism नहीं होनी चाहिए। डेमॉक्रेसी में optimism होनी चाहिए। और उन्होंने वो करके दिखाया। मुझे पूरा विश्वास है कि चुनौतियों के बावजूद। Despite all the challenges that it faces, India’s democracy will only go from strength to strength in making India the strong republic that it is meant to be. My final sentence: there is a difference between strength and power. Power में strength होता है। पर power के बाहर भी strength होता है। Power के बाहर जो strength होता है वो जनता का strength होता है। इसीलिए जयप्रकाश ने रामलीला मैदान में कहा था – रामधारी ‘दिनकर’ another son of Bihar, रामधारी ‘दिनकर’ के शब्दों में। I do not have to repeat it. जनता में जो ताकत होती है, वो पॉवर की ताकत से ज़्यादा होती है। तो वो ताकत काम करेगी। छोटी चीज़ों से हम deflect न हो जाएँ। जयप्रकाश की आवाज़ में, जयप्रकाश के शब्दों में – भावी इतिहास... (श्रोतागण से) तुम्हारा है।


Gopalkrishna Devdas Gandhi (born 22 April, 1945) is a noted scholar, author, a former civil servant and diplomat. He has served as the Governor in West Bengal and briefly in Bihar.

An alumnus of Delhi University’s St. Stephen’s College, he joined the Indian Administrative Service in 1968. He took voluntary retirement from IAS in 1992 to embark upon an illustrious diplomatic career, wherein he served as the High Commissioner of India to South Africa and Lesotho as well as the Ambassador of India to Iceland and Norway.

Shri Gandhi has always championed the cause of Indian cultural heritage and its values. It was this vision of his that served as an inspiration for Kalashetra Foundation, Chennai. As Chairperson of the governing body, he gave a worthy direction to the Indian Institute of Advanced Study, Shimla.

A prolific writer, he has translated Vikram Seth’s A Suitable Boy into Hindi, has authored Saranam, a novel on Sri Lanka’s Tamil plantation workers, Dara Sukoh, a play in verse and a couple of non-fiction titles, including Gandhi and South Africa, Gandhi and Sri Lanka, Nehru and Sri Lanka, India House, Colombo: Portrait of a Residence, and Abolishing the Death Penalty: Why India Should Say No to Capital Punishment.

Shri Gandhi speaks his mind fearlessly on issues related to transparency and ethics in politics. He is an immense inspiration to the younger generation. His current assignment as Distinguished Professor of History and Political Science at the Ashoka University, Sonepat is a testimony to the same.

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Takshila Overview

Takshila Educational Society, formed in 1997, in collaboration with Delhi Public Schools Society established its first Delhi Public School at Patna in 1998, followed by Delhi Public Schools at Pune in 2003, at Ludhiana in 2004, and at Coimbatore in 2012. All are a name to reckon with, a landmark in every sense of the word, and an epitome of good education and discipline. Delhi Public Schools Society is one of the largest chains of K-12 schools in the world with over 175 schools in India and foreign shores. The four K-12 schools of Takshila Educational Society (TES), have a combined student strength of over 11000 and a faculty of nearly 400. The overwhelming response to its institutions from the citizens and students has encouraged TES to reach for greater heights. TES completed a full circle, with schools in India’s East, West, North and South.

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